शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

पोस्ट ऑफिस

 पोस्ट ऑफिस में अब कहाँ टकराते हैं ख़ूबसूरत लड़के 


चिट्ठियाँ गुम होने का बड़ा नुकसान ये भी हुआ है 

‘एक्सक्यूज़ मी..पेन मिलेगा क्या’ जैसा बहाना जाता रहा 

‘आप बैठ जाइए..मैं लगा हूँ लाइन में’ कहने वाले भी कहाँ रहे 

मुए ज़माने ने इतना भर सुख भी छीन लिया 


वो दिन जब लाल पोस्ट बॉक्स जैसे तिलिस्मी संदूक 

और डाकिया जादूगर 

वो दिन जब महीने में डाकघर के चार चक्कर लग ही जाते 

और तीन बार कहीं टकरा ही जाती नज़रें 

बीते दिनों इतना रोमांच काफी था 

कॉलेज की सहेलियों से बतकही में ये बात ख़ास होती-

‘सुन..कल वो फिर दिखा था’

पोस्ट ऑफिस में दिखने वाले लड़के अमूमन शरीफ़ माने जाते 


पार्सल, मनीआर्डर, रजिस्टर्ड पोस्ट, ग्रीटिंग कार्ड 

और भी सौ काम थे 

राशन से कम कीमती नहीं थी चिट्ठियाँ 

एक से पेट भरता दूसरे से मन 

वो दिन जब डाकघर जाना हो तो 

लड़की अपना सबसे अच्छा सूट निकालती 


पोस्ट ऑफिस उन बैरंग चिट्ठियों का भी ठिकाना था 

जो एकदम सही पते पर पहुँचती 

कुछ बेनामी ख़त जो आँखों-आँखों में पढ़ लिए जाते


इन दिनों डाकघर सूने हो गए हैं 

अब आँखों पर भी चश्मा चढ़ गया है


- श्रुति कुशवाहा

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-संपादकीय चयन