समय का पहिया
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बात सीधी थी पर
बात सीधी थी पर एक बार भाषा के चक्कर में ज़रा टेढ़ी फँस गई। उसे पाने की कोशिश में भाषा को उलटा पलटा तोड़ा मरोड़ा घुमाया फिराया कि बात या तो ब...
खजुराहो में मूर्तियों के पयोधर
पत्थरों में कचनार के फूल खिले हैं इनकी तरफ़ देखते ही आँखों में रंग छा जाते हैं मानो ये चंचल नैन इन्हें जनमों से जानते थे। मानो हृदय ही फूला...
ट्राम में एक याद
चेतना पारीक कैसी हो? पहले जैसी हो? कुछ-कुछ ख़ुश कुछ-कुछ उदास कभी देखती तारे कभी देखती घास चेतना पारीक, कैसी दिखती हो? अब भी कविता लिखती हो? ...
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