मंगलवार, 9 सितंबर 2025
फूल-सा बिखरना
जैसे फूल बिखेरता है
अपनी पँखुड़ियाँ धरती पर
बिखेरता हूँ मैं
तुम पर अपने को
ठीक वैसे ही
फिर समेट नहीं पाता हूँ अपने को ही
जैसे समेट नहीं पाता फूल
अपनी बिखरी पँखुड़ियाँ
और फिर
फूल नहीं रह पाता है फूल
- आनंद हर्षुल
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विजया सती की पसंद
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