रविवार, 28 सितंबर 2025

ज़ख़्म ज़माने से मिले

 दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले 

हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले 

हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे 

वो फ़लाने से फ़लाने से फ़लाने से मिले 

ख़ुद से मिल जाते तो चाहत का भरम रह जाता 

क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले 

माँ की आग़ोश में कल मौत की आग़ोश में आज 

हम को दुनिया में ये दो वक़्त सुहाने से मिले 

कभी लिखवाने गए ख़त कभी पढ़वाने गए 

हम हसीनों से इसी हीले बहाने से मिले 

इक नया ज़ख़्म मिला एक नई उम्र मिली 

जब किसी शहर में कुछ यार पुराने से मिले 

एक हम ही नहीं फिरते हैं लिए क़िस्सा-ए-ग़म 

उन के ख़ामोश लबों पर भी फ़साने से मिले 

कैसे मानें कि उन्हें भूल गया तू ऐ 'कैफ़' 

उन के ख़त आज हमें तेरे सिरहाने से मिले 

      

- कैफ़ भोपाली

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-हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 



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