ताकि बनी रहे संसबरक्कत घर में
चुन पछोरकर
अनाज भर दिया है कोठी में
कि मेरी अनुपस्थिति में भी
कुछ रोज़ ज्योनार बन सके आसानी से
देखो न बाबा
भोर से संध्या हो गई है
लेस दिया है लालटेन और
लटका आई हूँ बूढ़े बरगद की डालियों पर
ताकी अँधेरे में वो खूसट
अपनी जटाओं से डराए नहीं
राहगीरों को
चलो न बाबा
निपटा आई हूँ सारे काम
अब ले चलो न अपने घर
गोधूलि से पहले ही
क्योंकि
ब्याहताएँ अँधेरे में विदा नहीं होती
- अपराजिता अनामिका
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विजया सती की पसंद
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