रविवार, 7 सितंबर 2025

ब्याहताएँ

देहरी लीपकर मांड आई हूँ मांडना
ताकि बनी रहे संसबरक्कत घर में 
चुन पछोरकर 
अनाज भर दिया है कोठी में 
कि मेरी अनुपस्थिति में भी 
कुछ रोज़ ज्योनार बन सके आसानी से

देखो न बाबा
भोर से संध्या हो गई है 
लेस दिया है लालटेन और 
लटका आई हूँ बूढ़े बरगद की डालियों पर 
ताकी अँधेरे में वो खूसट 
अपनी जटाओं से डराए नहीं 
राहगीरों को 

चलो न बाबा 
निपटा आई हूँ सारे काम 
अब ले चलो न अपने घर 
गोधूलि से पहले ही 
क्योंकि 
ब्याहताएँ अँधेरे में विदा नहीं होती 

- अपराजिता अनामिका 
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विजया सती की पसंद 

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