मैंने फूल देखे
फिर उन्हीं फूलों को
अपने भीतर खिलते देखा
मैंने पेड़ देखे
और उन्हीं पेड़ों के हरेपन को
अपने भीतर उमगते देखा
मैं नदी में उतरा
अब नदी भी बहने लगी
मेरे भीतर
मैंने चिड़िया को गाते सुना
गीत अब मेरे भीतर उठ रहे थे
यूँ बाहर जो मैं जीया
उसने भीतर
कितना भर दिया!
- कुंदन सिद्धार्थ
-----------------
हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें