मंगलवार, 8 जुलाई 2025

विरासत

वो कहानियाँ सुनाती थी 
जाने क्या था उसके सुनाने में 
आज तक कानों में सुनाई दे रही हैं 

जब कहती मैं, अरे इत्ती छोटी, और सुनाओ 
तो वह कहती, 
असली कहानी, कहानी कह देने के बाद शुरू होती है और कभी ख़त्म नहीं होती 

जैसे चाँद निकलता है बादलों की ओट से 
हर बार पूरा ताज़ा और भरपूर सफ़ेद 

ज्यों-ज्यों उम्र बीत रही है 
परतें खुलती चली जा रही हैं 
समझ आता है, सही कहती थी वह

शेर-चूहे की कहानी में
बात शेर की नहीं, चूहे की नहीं 
शेर और चूहा होने की थी 
शेर बस शेर ही नहीं, चूहा भी था - जब जाल में था 
चूहा, चूहा ही नहीं, शेर भी था - जब जाल कुतर रहा था 
समय था, समय का फेर था 

रानी सुरुचि ने ध्रुव को उसके पिता की गोद से उतारा 
माँ सुनीति विकल नहीं हुई 
बोली, पिता की गोद से भी बड़ी गोद है
तपस्या से मिलेगी 
सुनीति जानती थी, 
श्रम से अर्जित किया हुआ स्थान कोई छीन नहीं सकता 
ध्रुव है- स्थिर, अटल 
श्रम का प्रतिफल है 

कबूतर फँस गए थे 
और मिलकर ले उड़े थे जाल
साथ उड़ने के लिए फँसना शर्त नहीं 
साथ उड़ पाना कला है, हासिल है 

कमाल यह नहीं था कि अर्जुन ने लक्ष्य भेद दिया 
वह तो कौशल था
कमाल यह था कि उसे अपना लक्ष्य पता था 

वह नहीं है अब 
उसकी परतदार कहानियाँ हैं 
उसकी कहानियों के क़िरदार
मेरी विरासत हैं

- ऋचा जैन
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