हमें
न भायी
जग
की माया
हम
हैं गीत- गली के वासी
वहाँ, साधुओं
सिर्फ
नेह की
बजती
है शहनाई
जो
लय हमने साधी उस पर
वह
है होती नहीं पराई
गीत
– गली में ही
काबा
है
गीत
– गली में ही है कासी
वह
दुलराते
हर
सूरज को
गीत
– गली की हमें कसम है
उसमें
जाते ही मिट जाता
हाट-
लाट का सारा भ्रम है
वहाँ
साँस
जो
छवियाँ रचती
होती
नहीं कभी वे बासी
कल्पवृक्ष
है
उसी
गली में
जिसके
नीचे देव विराजे
लगते
हमें भिखारी सारे
दुनिया
के राजे - महराजे
महिमा
गीत
– गली की ऐसी
कभी
न रहतीं साँसें प्यासी
-कुमार रवींद्र
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हरप्रीत
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