होते आए घड़े अछूत
बुझी नहीं है अब तक प्यास
इस जड़ता की जय!
रहे बजाते ताली-थाली
डाल बुद्धि पर ताला
नहीं करेंगे साफ़, क़सम ली
जाति-धर्म का जाला
हमने पाले अहम अकूत
भेद-भाव के इसी अनय पर
टूटी जीवन-लय!
दुत्कारों के वही कथानक
गिने-चुने निर्देशक
पीढ़ी-दर-पीढ़ी झेली हैं
पीड़ाएँ बन याचक
दर्द नहीं यह सद्य प्रसूत
एक घड़ा क्या सबके मालिक
इसका क्या आशय!
- अनामिका सिंह
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद
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