सोमवार, 28 जुलाई 2025

अजब सफ़र है

अजब सफ़र है 

मैं अपनी मुट्ठी से रेत बनकर फिसल रहा हूँ 

 वह रेत दामन  में भर रही है

मैं थोड़ा मुट्ठी में रह गया हूँ

मैं थोड़ा दामन में गिर चुका हूँ 

मैं बाक़ी दोनों के दरमयाँ हूँ 

मुझे यह डर है 

मैं ज्यों ही मुट्ठी को खोल दूँगा 

वह अपने दामन को झाड़ देगी

-अम्मार इक़बाल

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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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