जाने क्या-क्या लिखा अभी तक
लेकिन जो लिखना था हमको,
अब तक नहीं लिखा।
किसने सोखे थे सपनों के
रंग उजाले वाले,
किसने जगा दिए निद्रा पर
चिंताओं के ताले
किसके डर से रही काँपती,
मन की दीपशिखा
अब तक नहीं लिखा।
किसके आश्वासन से टूटी
आशाओं की हिम्मत,
किसने कर्म छीनकर हमसे
दे दी खोटी किस्मत
घोर गरीबी का यह रस्ता,
किसने दिया दिखा
अब तक नहीं लिखा।
किसने सत्य, अहिंसा मारे
किसने शांति चुराई
किसने छीनी है वाणी से
शब्दों की अँगड़ाई
भाषा के सीने पर किसने,
आरा तेज रखा
अब तक नहीं लिखा।
- अश्वघोष
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- विजया सती के सौजन्य से
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