सुबह तीन बजे उठूँगा
तानपूरा सुनूँगा
ध्यान करूँगा
ऋचाएँ पढूँगा
रहस्यों पर सोचूँगा
सत्य को जानूँगा
प्यार को सोने दूँगा
उसे जगाऊँगा नहीं
निशब्द पुकारूँगा
काली काफी बनाऊँगा-पीऊँगा
सब कुछ बहुत धीमी गति से करूँगा
इधर-उधर जाता रहूँगा
केंद्र को केंद्र नहीं रहने दूँगा
इच्छाओं को शर्म से बाधित करूँगा
जड़ता को श्रम से
घड़ी से ज्यादा सही चलूँगा
नई किताबें शुरू करूँगा
नई कथाएँ
कम काम लूँगा
ज्यादा काम करूँगा।
- अविनाश मिश्र
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- विजया सती के सौजन्य से
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