गुरुवार, 17 जुलाई 2025

वक़्त का दरपन बूढ़ी आँखें

 

वक़्त का दरपन बूढ़ी आँखें।

उम्र की उतरन बूढ़ी आँखें।


कौन समझ पाएगा पीड़ा

ओढ़े सिहरन बूढ़ी आँखें।


जीवन के सोपान यही हैं

बचपन, यौवन, बूढ़ी आँखें।


चप्पा-चप्पा बिखरी यादें

बाँधे बंधन बूढ़ी आँखें।


टूटा चश्मा घिसी कमानी

चाह की खुरचन बूढ़ी आँखें।


एक इबारत सुख की खातिर

बाँचे कतरन बूढ़ी आँखें।


सपनों में देखा करती हैं

‘वर्षा’-सावन बूढ़ी आँखें।

 

 - वर्षा सिंह

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- संपादकीय चयन 

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