शनिवार, 26 जुलाई 2025

दुलारी धिया

पी के घर जाओगी दुलारी धिया 

लाल पालकी में बैठ चुक्के-मुक्के

सपनों का खूब सघन गुच्छा 

भुइया में रखोगी पाँव

महावर रचे

धीरे-धीरे उतरोगी 

सोने की थारी में जेवनार-दुलारी धिया 

पोंछा बन

दिन-भर फर्श पर फिराई जाओगी 

कछारी जाओगी पाट पर 

सूती साड़ी की तरह

पी से नैना ना मिला पाओगी दुलारी धिया 

दुलारी धिया 

छूट जाएँगी सखियाँ-सलेहरें

उड़ासकर अलगनी पर टाँग दी जाओगी 

पी घर में राज करोगी दुलारी धिया 

दुलारी धिया, दिन भर 

धान उसीनने की हँड़िया बन

चौमुहे चूल्हे पर धीकोगी 

अकेले में कहीं छुप के 

मैके की याद में दो-चार धार फोड़ोगी 

सास-ससुर के पाँव धो पीना, दुलारी धिया 

बाबा ने पूरब में ढूँढा

पश्चिम में ढूँढा

तब जाके मिला है तेरे जोग घर

ताले में कई-कई दिनों तक 

बंद कर दी जाओगी, दुलारी धिया 

पूरे मौसम लकड़ी की ढेंकी बन

कूटोगी धान

पुरइन के पात पर पली-बढ़ी दुलारी धिया 


पी घर से निकलोगी

दहेज की लाल रंथी पर

चित्तान लेटे

खोइछे में बाँध देगी

सास-सुहागिन, सवा सेर चावल 

हरदी का टूसा

दूब

पी घर को न बिसारना, दुलारी धिया।


 - बद्रीनारायण

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- विजया सती के सौजन्य से 


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