बुधवार, 16 जुलाई 2025

कबूतर लौटकर नभ से


कबूतर लौटकर नभ से सहमकर बुदबुदाते हैं

वहाँ पर भी किसी बारूद का

षडयंत्र जारी है


हवा में भी

बिछाया जा रहा घातक सुरंगों को

धरा से व्योम तक पहुँचा रहे

कुछ लोग जंगों को


गगन में गंध फैली है किसी नाभिक रसायन की

धरा पर दीखती विध्वंस की

व्यापक तैयारी है


वहाँ पर शांति,

सह-अस्तित्व जैसे शब्द बौने हैं

यहाँ पर सभ्यता के हाथ

एटम के खिलौने हैं


वहाँ से पंचशीलों में लगा घुन साफ़ दिखता है

मिसाइल के बटन से जुड़ गई

किस्मत हमारी है


शांति की आस्थाओं को 

चलो व्यापक समर्थन दें

युद्ध से जल रही भू को

नया उद्दाम जीवन दें


किसी हिरोशिमा की फिर कहीं न राख बन जाए

युद्ध तो युद्ध केवल युद्ध है

विध्वंसकारी है


 - जगदीश पंकज

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- संपादकीय चयन 


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