मंगलवार, 29 जुलाई 2025

जो समय बदलते हैं

घड़ी की सुइयों के बीच भी

अँधेरा रहता है 

शाम होने के बाद 

वह धीरे-धीरे 

गहराने लगता है

चंद्रमा की चमक

उसकी रफ़्तार पर नहीं पड़ती

शायद इसीलिए

बहुत रात के बाद 

उसके चलने की आवाज़

और तेज हो जाती है

जैसे अपने हिस्से की 

रौशनी माँग रही हो

हालांकि वह कभी 

मिलने वाली नहीं

फिर भी बल्ब जलाने से 

घड़ी का चेहरा

खिल जाता है

जो दूसरों का समय बदलते हैं

वे ऐसे ही रौशनी के लिए

तरसते रहते हैं

अनवरत चलते हुए

एक दिन रुक जाते हैं सहसा 

चुपचाप

जैसे घड़ी बंद मिलती है

किसी सुबह।


- शंकरानंद

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संपादकीय चयन 



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