रविवार, 6 जुलाई 2025

वंशी करो मुखर


गूँज उठे युग की साँसों में

नव जीवन का स्वर।

 

सदियों की सोई मानवता

ज्योति नयन खोले,

मिटे कलुष तम तोम

प्रभाती स्वर्णरंग घोले!

उतरें देव स्वर्ग से

मधु के कलश लिए भू पर।

वंशी करो मुखर। 

 

वाणी की वाणी पर

शाश्वत सरगम लहराये,

नये स्वरों में नये भाव भर

कवि का मन गाये!

फूटें जड़ चट्टानों से

रस के चेतन निर्झर।

वंशी करो मुखर

 

-    डॉ० रवींद्र भ्रमर 

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-हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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