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शनिवार, 17 मई 2025

बुनी हुई रस्सी

बुनी हुई रस्सी को घुमायें उल्टा
तो वह खुल जाती हैं
और अलग अलग देखे जा सकते हैं
उसके सारे रेशे
मगर कविता को कोई
खोले ऐसा उल्टा
तो साफ नहीं होंगे हमारे अनुभव
इस तरह
क्योंकि अनुभव तो हमें
जितने इसके माध्यम से हुए हैं
उससे ज्यादा हुए हैं दूसरे माध्यमों से
व्यक्त वे जरूर हुए हैं यहाँ
कविता को
बिखरा कर देखने से
सिवा रेशों के क्या दिखता है
लिखने वाला तो
हर बिखरे अनुभव के रेशे को
समेट कर लिखता है !

- भवानी प्रसाद मिश्र

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शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2023

कवि

क़लमअपनीसाध,

औरमनकीबातबिलकुलठीककहएकाध।

यहकितेरी-भरहोतोकह,

औरबहतेबनेसादेढंगसेतोबह।

जिसतरहहमबोलतेहैं,उसतरहतूलिख,

औरइसकेबादभीहमसेबड़ातूदिख।

चीज़ऐसीदेकिजिसकास्वादसिरचढ़जाए

बीजऐसाबोकिजिसकीबेलबनबढ़जाए।

फललगेंऐसेकिसुख-रस,सारऔरसमर्थ

प्राण-संचारीकिशोभा-भरजिनकाअर्थ।

टेढ़मतपैदाकरेगतितीरकीअपना,

पापकोकरलक्ष्यकरदेझूठकोसपना।
विंध्य,रेवा,फूल,फल,बरसातयागर्मी,

प्यारप्रियका,कष्ट-कारा,क्रोधयानरमी,

देशयाकिविदेश,मेराहोकितेराहो

होविशदविस्तार,चाहेएकघेराहो,
तूजिसेछूदेदिशाकल्याणहोउसकी,

तूजिसेगादेसदावरदानहोउसकी।


- भवानी प्रसाद मिश्र।

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