बुधवार, 20 मार्च 2024

एक दिन

सूरज एक नटखट बालक सा
दिन भर शोर मचाए
इधर-उधर चिड़ियों को बिखेरे
किरणों को छितराए 
कलम, दरांती, बुरुश, हथोड़ा
जगह-जगह फैलाए
शाम
थकी हारी माँ जैसी
एक दिया मलकाए
धीरे-धीरे सारी
बिखरी चीजें चुनती जाए।

 - निदा फ़ाज़ली।
-----------------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें