गुरुवार, 28 मार्च 2024

सौ-सौ जनम प्रतीक्षा कर लूँ

सौ-सौ जनम प्रतीक्षा कर लूँ 
प्रिय मिलने का वचन भरो तो! 

पलकों-पलकों शूल बुहारूँ
अँसुअन सींचू सौरभ गलियाँ
भँवरों पर पहरा बिठला दूँ
कहीं न जूठी कर दें कलियाँ 

फूट पड़े पतझर से लाली 
तुम अरुणारे चरन धरो तो! 

रात न मेरी दूध नहाई 
प्रात न मेरा फूलों वाला 
तार-तार हो गया निमोही 
काया का रंगीन दुशाला 

जीवन सिंदूरी हो जाए 
तुम चितवन की किरन करो तो! 

सूरज को अधरों पर धर लूँ
काजल कर आजूँ अँधियारी
युग-युग के पल छिन गिन-गिनकर 
बाट निहारूँ प्राण तुम्हारी 

साँसों की ज़ंजीरें तोड़ूँ
तुम प्राणों की अगन हरो तो!

- भारत भूषण।
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