मंगलवार, 26 मार्च 2024

तुम्हारी ही आमद है

यह परीक्षाओं का
ऊब और धूल भरा
मौसम हुआ करता था

उदास सुबह
थकी दोपहरी
घबराई शाम
चिंतातुर रातें
यही सब परिचित हुआ करते थे
इस मौसम के

इसकी हवाएँ
काव्यरूढ़ि भर थीं
बिना छुए
गुज़र जाया करती थी!

तुम्हारी ही आमद है
कि अब यह फागुन है

- कुमार सौरभ।
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