यह परीक्षाओं का
ऊब और धूल भरा
मौसम हुआ करता था
उदास सुबह
थकी दोपहरी
घबराई शाम
चिंतातुर रातें
यही सब परिचित हुआ करते थे
इस मौसम के
इसकी हवाएँ
काव्यरूढ़ि भर थीं
बिना छुए
गुज़र जाया करती थी!
तुम्हारी ही आमद है
कि अब यह फागुन है
- कुमार सौरभ।
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