सोमवार, 18 मार्च 2024

मित्र राग में सोचते हुए

वे बेशक सजा लें अपने तोपख़ाने 
और हमारी ज़िंदगी को 
अपनी मर्ज़ी का ग़ुलाम बना लें 
मुझे यक़ीन है 
कि दोस्त साथ होंगे अगर 
तो मैं पृथ्वी को 
नष्ट होने से अंततः बचा लूँगा
दुनिया की बेशतर आबादी 
फ़िलहाल जबकि 
ज़िंदा बची रहने के लिए 
बंकरों की मोहताज है 
मैं दोस्तों के 
पुराने ख़त पढ़ता हुआ 
किसी भी मौसम में बेख़ौफ़ घूमता हूँ 
इस दौर का 
सबसे क्रूर खलपुरुष 
सरेबाज़ार मुस्कुराता हुआ घूमता है 
सिर्फ़ इसलिए 
क्योंकि न्यायाधीश उसका मित्र है 
दोस्त हमारी सभ्यता के 
सबसे पुराने प्रतीक चिह्न हैं 
और दोस्ती आत्मनिर्वासन के दिनों में 
हमारी सबसे महफूज़ पनाहगाह 
इस धरती पर सिर्फ़ दोस्त ही होते हैं 
जो हमें प्रेम करने से नहीं रोकते 
आप चाहें न मानें लेकिन बरसों-बरस 
ज़िंदगी के बेहद ख़िलाफ़ दिन 
सिर्फ़ दोस्ती गुनगुनाते हुए तय किए हैं मैंने 
और अक्सर यह सोचा है 
दोस्त न होंगे अगर तो कैसे बचेगी पृथ्वी!

- प्रभात मिलिंद।
------------------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें