वे बेशक सजा लें अपने तोपख़ाने
और हमारी ज़िंदगी को
अपनी मर्ज़ी का ग़ुलाम बना लें
मुझे यक़ीन है
कि दोस्त साथ होंगे अगर
तो मैं पृथ्वी को
नष्ट होने से अंततः बचा लूँगा
दुनिया की बेशतर आबादी
फ़िलहाल जबकि
ज़िंदा बची रहने के लिए
बंकरों की मोहताज है
मैं दोस्तों के
पुराने ख़त पढ़ता हुआ
किसी भी मौसम में बेख़ौफ़ घूमता हूँ
इस दौर का
सबसे क्रूर खलपुरुष
सरेबाज़ार मुस्कुराता हुआ घूमता है
सिर्फ़ इसलिए
क्योंकि न्यायाधीश उसका मित्र है
दोस्त हमारी सभ्यता के
सबसे पुराने प्रतीक चिह्न हैं
और दोस्ती आत्मनिर्वासन के दिनों में
हमारी सबसे महफूज़ पनाहगाह
इस धरती पर सिर्फ़ दोस्त ही होते हैं
जो हमें प्रेम करने से नहीं रोकते
आप चाहें न मानें लेकिन बरसों-बरस
ज़िंदगी के बेहद ख़िलाफ़ दिन
सिर्फ़ दोस्ती गुनगुनाते हुए तय किए हैं मैंने
और अक्सर यह सोचा है
दोस्त न होंगे अगर तो कैसे बचेगी पृथ्वी!
- प्रभात मिलिंद।
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