मुखड़ा हुआ अबीर लाज से
अंकुर फूटे आस के।
जंगल में भी रंग बरसे हैं
दहके फूल पलाश के।
मादकता में डाल आम की
झुककर हुई विभोर है।
कोयल लिखती प्रेम की पाती
बाँचे मादक भोर है।
खुशबू गाती गीत प्यार के
भौंरों की गुंजार है।
सरसों ने भी ली अँगड़ाई
पोर-पोर में प्यार है।
मौसम पर मादकता छाई
किसको अपना होश है।
धरती डूबी है मस्ती में
फागुन का यह जोश है।
- रामेश्वर कांबोज 'हिमांशु'।
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