शुक्रवार, 29 मार्च 2024

एक माँ की डायरी

तुम हँसती हो
हँस उठता है मेरा सर्वांग

तुम्हारी उदासी
बढ़ा देती है मेरी बेचैनियाँ

तुम उड़ती हो
उड़ जाता है मेरा मन
आकाश की खुली बाँहों में बेफ़िक्री से

तुम टूटती हो
टूट जाता है मेरा अस्तित्व
भड़भड़ाकर

तुम प्रेम करती हो
भर जाती हूँ मैं
गमकते फूलों की क्यारियों से

तुम बनाती हो
अपनी पहचान
लगता है
मैं फिर से जानी जा रही हूँ

तुम लिखती हो कविताएँ
लगता है
सुलग उठे हैं
मेरे शब्द 
तुम्हारी क़लम की आँच में 

- अनुप्रिया।
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