शिराओं में हर पल बहता हुआ
अबाध उम्मीद का दीया,
अद्भुत, जादुई भरोसा
जो कभी पूरा नहीं हुआ
कभी मिटता भी नहीं।
अबाध उम्मीद का दीया,
अद्भुत, जादुई भरोसा
जो कभी पूरा नहीं हुआ
कभी मिटता भी नहीं।
काट लेते हैं सारी उम्र
हारते, पछाड़ खाते "होगा" के भरोसे
सार्थक बनने की बची हुई प्यास
पराजय की राख के नीचे
चिनकती चिंगारी जैसी अनबुझी।
साँसों की अदम्य ताकत है - होगा
कल्पना का स्वप्निल क्षितिज
मनचाहे जीवन का अनगढ़ मैदान
आत्मा की शिराओं में बहती
अनजानी प्रेरणा की तरह।
"होगा" मचलती हुई मशाल है,
ऊँचाईयों की उठान
रोम-रोम से पुकारो!
अपना शेष रह गया "होना"
मिलेगा पूर्णता का असंभव शिखर।
टिका हुआ है - होगा
है की जमीन पर।
है - रीढ़ जैसा है - होगा के लिए
वर्तमान की धड़कनें
टिकी रहती हैं अक्सर - होगा पर।
है - रीढ़ जैसा है - होगा के लिए
वर्तमान की धड़कनें
टिकी रहती हैं अक्सर - होगा पर।
"जैसा चाहा, वैसा हुआ"
ऐसा आजतक कहाँ हुआ?
मगर चाहने से मुक्ति पाना
किसके लिए संभव हुआ?
ऐसा आजतक कहाँ हुआ?
मगर चाहने से मुक्ति पाना
किसके लिए संभव हुआ?
- भरत प्रसाद।
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