गुरुवार, 24 अगस्त 2023

अबकी बार लौटा तो

अबकी बार लौटा तो
बृहत्तर लौटूँगा 
चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें नहीं
कमर में बाँधें लोहे की पूँछे नहीं
जगह दूँगा साथ चल रहे लोगों को
तरेर कर न देखूँगा उन्हें
भूखी शेर-आँखों से

अबकी बार लौटा तो
मनुष्यतर लौटूँगा
घर से निकलते
सड़कों पर चलते
बसों पर चढ़ते
ट्रेनें पकड़ते
जगह-बेजगह कुचला पड़ा
पिद्दी-सा जानवर नहीं
अगर बचा रहा तो
कृतज्ञतर लौटूँगा

अबकी बार लौटा तो
हताहत नहीं
सबके हिताहित को सोचता
पूर्णतर लौटूँगा

- कुँवर नारायण।

----------

अनूप भार्गव की पसंद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें