मौत ने ज़िंदगी से कहा
मैं तुमसे ज़्यादा ताकतवर हूँ
क्योंकि तुम्हें एक दिन मेरी ही शरण में आना है!
क्योंकि तुम्हें एक दिन मेरी ही शरण में आना है!
ज़िंदगी ने उत्तर दिया,
मैं हूँ तो
फूल है, पत्ती है, बच्चे हैं, रंग-बिरंगी चिड़ियाँ है और प्रेम है!
मैं हूँ तो धरती आबाद है!
अब मौत की बारी थी
जिनकी तुम बातें कर रही हो
उनकी कितनी बार मैं क़ब्र बिछा चुका हूँ
इसलिए मैं ही ताक़तवर हूँ!
ज़िंदगी ने तर्क आगे बढ़ाया
मैं हूँ तो तमाम सभ्यताएँ फली-फूली
इंसानियत ने बड़े बड़े डग भरे!
इस बार मौत ने बहुत डरावने अंदाज़ में कहा
तुम्हें यह भी पता होना चाहिए
कि कितनी सभ्यताओं को मैंने धूल में मिला दिया!
आज तुम उनके अवशेष ढूँढ़ते फिर रहे हो!
इस बार ज़िंदगी ने मुस्कुरा कर कहा
मैं ही तो हूँ
जो दोनों तरफ़ से तर्क कर रही हूँ
तुम्हारा तो कोई पक्ष ही नहीं
तुम तो मौत हो
सिर्फ़ ठंडी मौत!!
- मनीष आज़ाद।
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प्रगति टिपणीस की पसंद
राजेंद्र गुप्ता के सौजन्य से
ज़िन्दगी और मौत का यथार्थ बयां करती कविता। लेकिन जीवन है तभी तो मृत्यु है। जीवन ही नहीं तो मौत का भी अस्तित्व समाप्त।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता है
जवाब देंहटाएंबढ़िया तर्क...!
जवाब देंहटाएंजिंदगी और मौत का सटीक तर्क। बेहतरीन अभिव्यक्ति।
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