तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये
थे कभी मुखपृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये
थे कभी मुखपृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये
यवनिका बदली कि सारा दृश्य बदला मंच का
थे कभी दुल्हा स्वयं बारातियों तक आ गये
वक्त का पहिया किसे कुचले कहाँ कब क्या पता
थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ गये
देख ली सत्ता किसी वारांगना से कम नहीं
जो कि अध्यादेश थे खुद अर्जियों तक आ गये
देश के संदर्भ में तुम बोल लेते खूब हो
बात ध्वज की थी चलाई कुर्सियों तक आ गये
प्रेम के आख्यान में तुम आत्मा से थे चले
घूम फिर कर देह की गोलाईयों तक आ गये
कुछ बिके आलोचकों की मानकर ही गीत को
तुम ऋचाएँ मानते थे गालियों तक आ गये
सभ्यता के पंथ पर यह आदमी की यात्रा
देवताओं से शुरु की वहशियों तक आ गये
- चंद्रसेन विराट।
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