गोद लिये वह दो बच्चों को
भीड़ भरे कच्चे मसान में
देख रही है धूँ-धूँ जलती
घरवालों की तीन चिताएँ
भीड़ भरे कच्चे मसान में
देख रही है धूँ-धूँ जलती
घरवालों की तीन चिताएँ
छोटे छप्पर में छह जन थे
सास ससुर पति के बंधन थे
साँझ-सवेरे नित टकराते
रीते-बीते-से बर्तन थे
छप्पर बेचा, बर्तन बेचे
फिर भी कम पड़ गईं दवाएँ
सास ससुर पति के बंधन थे
साँझ-सवेरे नित टकराते
रीते-बीते-से बर्तन थे
छप्पर बेचा, बर्तन बेचे
फिर भी कम पड़ गईं दवाएँ
बच्चे-बूढ़ों-से सारे दुख
देखे-भाले-दुलराए थे
भूख-ग़रीबी-रोग-उधारी
घर के थे, आते जाते थे
वज्रपात के बाद मगर थे
यम के साए दाएँ-बाएँ
ले आई सिंदूर की रेखा
घर से जिसको इस मसान तक
ले जाएगी ममता उसको
इस मसान से किस मसान तक
जाने क्या-क्या जल जाना है
हल क्या है कुछ आप सुझाएँ
- विजय कुमार स्वर्णकार।
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लक्ष्मीशंकर वाजपेयी की पसंद
अत्यन्त मार्मिक एवं करुण।
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