शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

नवगीत

गोद लिये वह दो बच्चों को
भीड़ भरे कच्चे मसान में
देख रही है धूँ-धूँ जलती 
घरवालों की तीन चिताएँ

छोटे छप्पर में छह जन थे 
सास ससुर पति के बंधन थे 
साँझ-सवेरे नित टकराते
रीते-बीते-से बर्तन थे 
छप्पर बेचा, बर्तन बेचे 
फिर भी कम पड़ गईं दवाएँ

बच्चे-बूढ़ों-से सारे दुख 
देखे-भाले-दुलराए थे 
भूख-ग़रीबी-रोग-उधारी
घर के थे, आते जाते थे
वज्रपात के बाद मगर थे
यम के साए दाएँ-बाएँ

ले आई सिंदूर की रेखा
घर से जिसको इस मसान तक 
ले जाएगी ममता उसको
इस मसान से किस मसान तक 
जाने क्या-क्या जल जाना है 
हल क्या है कुछ आप सुझाएँ

- विजय कुमार स्वर्णकार।

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