शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

पाँच बज गए

पाँच बज गए

दफ़्तरों के पिंजरों से
हज़ारों परिंदे (जो मुर्दा थे)
सहसा जीवित हो गए
पाँच बज गए

आकुल मन
श्लथ तन

भावनाओं के समु्द्र
शब्दों के पक्षी
गीतों के पंख खोल
उड़ गए
उड़ गए
पाँच बज गए।

- रवींद्रनाथ त्यागी।
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संपादकीय चयन 

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