बुधवार, 24 जनवरी 2024

तुम्हारे साथ रहकर

तुम्हारे साथ रहकर 
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है 
कि दिशाएँ पास आ गई हैं, 
हर रास्ता छोटा हो गया है, 
दुनिया सिमटकर 
एक आँगन-सी बन गई है 
जो खचाखच भरा है, 
कहीं भी एकांत नहीं 
न बाहर, न भीतर। 

हर चीज़ का आकार घट गया है
पेड़ इतने छोटे हो गए हैं 
कि मैं उनके शीश पर हाथ रख 
आशीष दे सकता हूँ
आकाश छाती से टकराता है
मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ। 

तुम्हारे साथ रहकर 
अक्सर मुझे महसूस हुआ है 
कि हर बात का एक मतलब होता है
यहाँ तक कि घास के हिलने का भी
हवा का खिड़की से आने का
और धूप का दीवार पर 
चढ़कर चले जाने का। 

तुम्हारे साथ रहकर 
अक्सर मुझे लगा है 
कि हम असमर्थताओं से नहीं 
संभावनाओं से घिरे हैं
हर दीवार में द्वार बन सकता है 
और हर द्वार से पूरा का पूरा 
पहाड़ गुज़र सकता है। 

शक्ति अगर सीमित है
तो हर चीज़ अशक्त भी है
भुजाएँ अगर छोटी हैं
तो सागर भी सिमटा हुआ है
सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है, 
जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है 
वह नियति की नहीं मेरी है।

- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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संपादकीय चयन 

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