मंगलवार, 30 जनवरी 2024

किवाड़

मैं माँ की नज़र से 
किवाड़ को कभी नहीं देख सका 

माँ अक्सर रेल 
और किवाड़ से बातें करती थी 
ऋतु कोई भी हो 
किवाड़ की एक ख़ास दस्तक पर ही 
बेला महकती थी 

और फिर आँखों में रह जाता था 
साल भर पतझड़ 
अगली दस्तक की इंतज़ार में...

- आलोक आज़ाद।
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संपादकीय चयन 

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