मैं माँ की नज़र से
किवाड़ को कभी नहीं देख सका
माँ अक्सर रेल
और किवाड़ से बातें करती थी
ऋतु कोई भी हो
किवाड़ की एक ख़ास दस्तक पर ही
बेला महकती थी
और फिर आँखों में रह जाता था
साल भर पतझड़
अगली दस्तक की इंतज़ार में...
- आलोक आज़ाद।
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संपादकीय चयन
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