मंगलवार, 23 जनवरी 2024

अभिधा में नहीं

जो कुछ कहना हो उसे
ख़ुद से भी चाहे
व्यंजना में कहती है वह
कभी लक्षणा में
अभिधा में नहीं लेकिन कभी

कोई अदालत है प्रेम जैसे
क़बूल अभिधा में जो
कर लिया
सज़ा से बचेगी कैसे!

- नंदकिशोर आचार्य।
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संपादकीय चयन 

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