गुरुवार, 25 जनवरी 2024

शुरुआत होती है यहीं से

निश्चय ही रोटी का सच 
बहुत बड़ा है 
पर आदमी होने का सच 
उससे भी बड़ा है 
मेरी कविता को तलाश है 
उस सड़क की 
जो रोटी से होकर 
आदमी तक जाती है 

पर कोई है -
उसकी आँखों पर 
पट्टी बाँध देता है 
वह जो भी पगडंडी पकड़ती है 
थोड़ी दूर जाकर 
अंधी गली में तब्दील हो जाती है 
जानती हूँ 
वे हाथ किसके हैं 
और शुरुआत होती है यहीं से 
जंग की।

- निर्मला गर्ग।
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संपादकीय चयन 

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