मंगलवार, 2 जनवरी 2024

गए साल की

गए साल की
ठिठकी ठिठकी ठिठुरन
नए साल के
नए सूर्य ने तोड़ी।

देश-काल पर,
धूप-चढ़ गई,
हवा गरम हो फैली,
पौरुष के पेड़ों के पत्ते
चेतन चमके।

दर्पण-देही
दसों दिशाएँ
रंग-रूप की
दुनिया बिंबित करती,
मानव-मन में
ज्योति-तरंगे उठतीं।

- केदारनाथ अग्रवाल।
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संपादकीय चयन 

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