गए साल की
ठिठकी ठिठकी ठिठुरन
नए साल के
नए सूर्य ने तोड़ी।
देश-काल पर,
धूप-चढ़ गई,
हवा गरम हो फैली,
पौरुष के पेड़ों के पत्ते
चेतन चमके।
दर्पण-देही
दसों दिशाएँ
रंग-रूप की
दुनिया बिंबित करती,
मानव-मन में
ज्योति-तरंगे उठतीं।
- केदारनाथ अग्रवाल।
-----------------------
संपादकीय चयन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें