शनिवार, 11 मई 2024

निशानी

अपनी बीती हुई रंगीन जवानी देगा 
मुझ को तस्वीर भी देगा तो पुरानी देगा 

छोड़ जाएगा मिरे जिस्म में बिखरा के मुझे 
वक़्त-ए-रुख़्सत भी वो इक शाम सुहानी देगा
 
उम्र भर मैं कोई जादू की छड़ी ढूँढूगीं 
मेरी हर रात को परियों की कहानी देगा 

हम-सफ़र मील का पत्थर नज़र आएगा कोई 
फ़ासला फिर मुझे उस शख़्स का सानी देगा 

मेरे माथे की लकीरों में इज़ाफ़ा कर के 
वो भी माज़ी की तरह अपनी निशानी देगा
 
मैं ने ये सोच के बोए नहीं ख़्वाबों के दरख़्त 
कौन जंगल में लगे पेड़ को पानी देगा
 
- अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
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अनूप भार्गव के सौजन्य से 

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