फ़ोन की घंटी बजी
मैंने कहा- मैं नहीं हूँ
और करवट बदलकर सो गया
मैंने कहा- मैं नहीं हूँ
और करवट बदलकर सो गया
दरवाज़े की घंटी बजी
मैंने कहा- मैं नहीं हूँ
और करवट बदलकर सो गया
अलार्म की घंटी बजी
मैंने कहा- मैं नहीं हूँ
और करवट बदलकर सो गया
एक दिन
मौत की घंटी बजी...
हड़बड़ाकर उठ बैठा-
मैं हूँ... मैं हूँ... मैं हूँ..
मौत ने कहा-
करवट बदलकर सो जाओ।
- कुँवर नारायण
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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