सोमवार, 20 मई 2024

चाँदनी

जब से सँभाला होश मेरी काव्य चेतना ने
मेरी कल्पना में आती-जाती रही चाँदनी।

आधी-आधी रात मेरी आँख से चुरा के नींद
खेत खलिहान में बुलाती रही चाँदनी।

सुख में तो सभी मीत होते किंतु दुख में भी
मेरे साथ-साथ गीत गाती रही चाँदनी।

जाने किस बात पे मैं चाँदनी को भाता रहा
और बिना बात मुझे भाती रही चाँदनी।

- उदयप्रताप सिंह
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हरप्रीत सिंह पुरी की सौजन्य से 

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