मेरी कल्पना में आती-जाती रही चाँदनी।
आधी-आधी रात मेरी आँख से चुरा के नींद
खेत खलिहान में बुलाती रही चाँदनी।
सुख में तो सभी मीत होते किंतु दुख में भी
मेरे साथ-साथ गीत गाती रही चाँदनी।
जाने किस बात पे मैं चाँदनी को भाता रहा
और बिना बात मुझे भाती रही चाँदनी।
- उदयप्रताप सिंह
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हरप्रीत सिंह पुरी की सौजन्य से
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