मैं जीतता हूँ
क्योंकि मुझे तुमसे प्रेम है
मैं पराजित होता हूँ
क्योंकि मुझे तुमसे प्रेम है
मैं शब्दों में रचता हूँ तुम्हें
शब्दों से छूता हूँ
शब्दों में भोगता हूँ
मैं चाहता हूँ हर शब्द तुम्हारे लिए हो —
ये अग्निशिखर हैं,
ऊँची उठती मीनारें हैं,
न लौटे हुए समुद्र में भटकते जहाज़ हैं,
क़िले में दफ़्न एक ख़ामोश मक़बरा है,
पहाड़ी ढलान से उतरती बारिश है,
गिरती बिजलियों में दमकता तुम्हारा सुर्ख़ चेहरा,
छाती पर उभरा रात का सूरज,
खोई कल्पनाओं की बंद सीपियाँ
ये फ़र्श, छायाएँ और आलोड़न
कुर्सियाँ, किताबें और परदे
खिड़कियाँ, तस्वीरें और जालियाँ
लकड़ी, शहद और इत्र
सब तुम्हारे लिए
हाँ, सब तुम्हारे लिए
मैं इनमें धँसता हूँ
चीन्हता हूँ अपने विजेता शब्द
मैं रीतता हूँ
क्योंकि मुझे तुमसे प्रेम है।
- नीलोत्पल
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संपादकीय चयन
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