जिस गंदे रास्ते से हम रोज़ गुज़रते हैं
वह फिर गंदा लगना बंद हो जाता है।
रोज़ाना हम कुछ अजीबो-गरीब चीज़ें देखते हैं
और फिर हमारी आँखों के लिए
वे अजीबो-गरीब नहीं रह जाती।
वह फिर गंदा लगना बंद हो जाता है।
रोज़ाना हम कुछ अजीबो-गरीब चीज़ें देखते हैं
और फिर हमारी आँखों के लिए
वे अजीबो-गरीब नहीं रह जाती।
हम इतने समझौते देखते हैं आसपास
कि समझौतों से हमारी नफ़रत ख़त्म हो जाती है।
इसी तरह, ठीक इसी तरह हम मक्का़री, कायरता,
क्रूरता, बर्बरता, उन्माद
और फासिज़्म के भी आदी होते चले जाते हैं।
सबसे कठिन है
एक सामान्य आदमी होना।
एक सामान्य आदमी होना।
सामान्यता के लिए ज़रूरी है कि
सारी असामान्य चीज़ें हमें असामान्य लगें
क्रूरता, बर्बरता, उन्माद और फासिज़्म हमें
हरदम क्रूरता, बर्बरता, उन्माद और फासिज़्म ही लगे
यह बहुत ज़रूरी है
और इसके लिए हमें लगातार
बहुत कुछ करना होता है
जो इन दिनों
ग़ैरज़रूरी मान लिया गया है।
- कात्यायनी
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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