छाँव हर पल हुई, हुई, न हुई
एक पहेली है ज़िंदगी अपनी
क्या पता हल हुई, हुई, न हुई
देह का फ़लसफ़ा बताता है
कल ये संदल हुई, हुई, न हुई
जो नदी तुझमें - मुझमें बहती है
उसमें कलकल हुई, हुई, न हुई
ये नुमाइश तो चार दिन की है
फिर ये हलचल हुई, हुई, न हुई
मानकर घास रौंद मत इसको
कल ये मखमल हुई, हुई, न हुई
जितना जी चाहे उतनी पी ले तू
फिर ये बोतल हुई, हुई, न हुई
- उर्मिलेश
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद
प्रस्तुतकर्ता की नेक सलाह - यहाँ बोतल का अर्थ ज़िंदगी समझें (उमर ख़य्याम की रुबाई और बच्चन की मधुशाला की तरह), दारू की बोतल नहीं।
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