शनिवार, 25 मई 2024

चल हवा

चल हवा, उस ओर मेरे साथ चल
चल वहाँ तक जिस जगह मेरी प्रिया
गा रही होगी नई ताजा ग़ज़ल 
चल हवा, उस ओर मेरे साथ चल।

चल जहाँ मेरा अमर विश्वास है
आत्माओं में मिलन की प्यास है
आज तक का तो यही इतिहास है
है जहाँ मधुवन वहीं पर रास है
मिल गया जिसको कि कान्हा का पता
कौन राधा है जरा तू ही बता
जो कन्हैया से करेगी प्रीति छल
चल हवा, उस ओर मेरे साथ चल।

मत फँसा सुख चक्र दुख की कील में
मत उठा तूफ़ान दुख की झील में
हो सके तो रख नए जलते दिये
आस के बुझते हुए कंदील में
तू हवा है कर सुरभि का आचमन
छोड़कर अपने पुराने ये बसन
तू नए अहसास के कपड़े बदल
चल हवा, उस ओर मेरे साथ चल।

चल जहाँ तक बाँसुरी की धुन चले
फूल की खुशबू चले, गुनगुन चले
भीग जा तू प्रीति के हर रंग में
साथ जब तक प्राण का फागुन चले
पूछ मत अब जा रहा हूँ मैं कहाँ
चल प्रतीक्षा में खड़े होंगे जहाँ
एक नीली झील, दो नीले कमल
चल हवा, उस ओर मेरे साथ चल।

- कुँअर बेचैन 
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

1 टिप्पणी:

  1. भीग जा तू प्रीति के हर रंग में
    साथ जब तक प्राण का फागुन चले---चल हवा। प्रेम रंग में पगी कविता। बढ़िया!

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