वह तुमको देखते ही दौड़ती नहीं तुम्हारी तरफ़
न तपाक से चूमती है तुमको
न तुम्हारा हाथ, हाथ में लेकर चलती है
न ऐसे पत्र लिखती है जिसमें आहें और उसांसे हों
वह प्रेमिका नहीं, तुम्हारी पत्नी है
जो तुम्हारे तुम की एवज में तुम्हें आप कहती है
उसकी बातों में खुद के माता पिता भाई बहन
तुम्हारे माता पिता भाई बहन होते हैं
वह हर बात बच्चों से शुरू करती है और उन्हीं पर खत्म
और तुम्हें लगता है
वह तुम्हें प्यार नहीं करती
पर वह सदैव तुम्हारे भले की कामना करती है
उसकी आत्मा की गहराई में तुम्हारा संगीत बजता है
तुम्हारी अनुपस्थिति में वह सो नहीं पाती
वह अदृश्य हवा है जिसमें तुम साँस लेते हो
वह परिंडे का जल है जिसे तुम पीते हो
वह वाचाल चकाचौंध नहीं धीमा उजास है
वह गरणाती गंध नहीं भीनी सुवास है
वह उच्छल तरंग नहीं मंथर बहाव है
ऊपर-ऊपर ठंडा भीतर गुनगुना
आह्लादकारी
हाँ, जब कभी वह बहुत ख़ुश होती है और अकेली-तुम्हारे पास
वह तुम्हें बाथ में भरकर चूम लेती है
और तुम उसे हैरत से देखते हो देर तक, अवाक
- विनोद पदरज।
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विजया सती की पसंद
कितना मधुर पावन संगीत है ना पत्नी! सटीक विवरण करती भाव अभिव्यक्ति! साधुवाद!!!!
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