बुधवार, 21 फ़रवरी 2024

एक सूर्य डूबा

दिन यों ही बीत गया! 
अंजुरी में भरा-भरा जल जैसे रीत गया। 

सुबह हुई 
तो प्राची ने डाले डोरे 
शाम हुई पता चला 
थे वादे कोरे 
गोधूलि, लौटते पखेरू संगीत गया। 
दिन यों ही बीत गया! 

रौशन 
बुझती-बुझती शक्लों से ऊबा 
एक चाय का प्याला 
एक सूर्य डूबा 
साँझ को अँधेरा फिर एक बार जीत गया। 
दिन यों ही बीत गया! 

आज का अपेक्षित सब 
फिर कल पर टाला 
उदासियाँ मकड़ी-सी 
तान रहीं जाला 
तज कर नेपथ्य कहाँ, बाउल का गीत गया। 
दिन यों ही बीत गया!

- उमाकांत मालवीय।
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संपादकीय चयन 

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