शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2024

दफ़्तर में धूप

खिड़कियों से आती धूप को 
ग़ौर से देखो वसुधा 
टाइपराइटर पर 
तुम्हारी उँगलियों के अलावा 
धूप भी गिर रही है 
लगातार 
तुम्हारे कंधों से फिसलती हुई 

धूप पर नज़र रखो 
कि वह प्रेमपत्र ही टाइप करने लगे 
तो डाँट किसे पड़ेगी 
वह नौकरी तो नहीं करती तुम्हारी तरह 
वह तो छुप जाएगी अभी 
आसमान में 
भटकते बादल के किसी टुकड़े के पीछे 

धूप पर नज़र रखो सिर्फ़ 
उससे बात नहीं करना 
वह तुम्हारी सहेली नहीं 
धूप है 

धूप जाड़े की 
आराम से पसरती हुई 
केबिन में 

छुट्टी का दिन होता 
तो रज़ाई-गद्दे ही सुखा लेती 
घर के 
तुम्हारे ये काम हो जाते 
इस धूप में 

दफ़्तर का दिन है 
तो धूप पर नज़र रखो सिर्फ़ 

धूप 
तुम्हारे कंधों से 
फिसलती हुई 
टाइपराइटर पर 
गिर रही है 
लगातार...

- राजेंद्र शर्मा।
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संपादकीय चयन 

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