खिड़कियों से आती धूप को
ग़ौर से देखो वसुधा
टाइपराइटर पर
तुम्हारी उँगलियों के अलावा
धूप भी गिर रही है
लगातार
तुम्हारे कंधों से फिसलती हुई
धूप पर नज़र रखो
कि वह प्रेमपत्र ही टाइप करने लगे
तो डाँट किसे पड़ेगी
वह नौकरी तो नहीं करती तुम्हारी तरह
वह तो छुप जाएगी अभी
आसमान में
भटकते बादल के किसी टुकड़े के पीछे
धूप पर नज़र रखो सिर्फ़
उससे बात नहीं करना
वह तुम्हारी सहेली नहीं
धूप है
धूप जाड़े की
आराम से पसरती हुई
केबिन में
छुट्टी का दिन होता
तो रज़ाई-गद्दे ही सुखा लेती
घर के
तुम्हारे ये काम हो जाते
इस धूप में
दफ़्तर का दिन है
तो धूप पर नज़र रखो सिर्फ़
धूप
तुम्हारे कंधों से
फिसलती हुई
टाइपराइटर पर
गिर रही है
लगातार...
- राजेंद्र शर्मा।
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संपादकीय चयन
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