रविवार, 11 फ़रवरी 2024

यौवन

मुझे दिख गया वह 
कल चौराहे पर 
भरी दुपहरी में 
झिझका, ठिठका 
दिग्भ्रमित-सा खड़ा 
सड़क पार करने की 
कोशिश करता हुआ 
मैंने पीछे से 
कंधे पर हाथ रखकर 
पूछा आत्मीयता से 
भाई, नए आए हो?
जाना कहाँ है?
कोई पता हो तो बताओ 
मैं करूँ सहायता ढूँढ़ने में 

चौंक कर बोला वह 
क्यों करना चाहते हो 
तुम मेरी मदद 
मैं तो खड़ा हूँ यहाँ 
न जाने कब से 
अब तक तो लोग 
बस गुज़रते गए हैं 
मुझे देखते हुए मुस्कुराकर 
मालूम नहीं मुझको स्वयं 
मैं यहाँ आया कब और कहाँ से 
समय ने लाकर 
छोड़ दिया मुझे इस चौराहे पर 
लेकिन तुम कौन हो 
यूँ मुझसे पूछते मेरा हाल? 

शांत भाव से 
उत्तर दिया मैंने 
मैं हूँ तुम्हारा बचपन 
जिसे ढूँढ़ने खड़े हो तुम यहाँ। 

इससे पहले 
कि वह पकड़ पाता 
मेरा हाथ 
मैं तेज़ी से लपककर 
जीवन के महानगर की 
अपार भीड़ में 
खो गया!

- अजीत रायज़ादा।
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संपादकीय चयन 

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