शायद बीज ने किया होगा
मिट्टी के विरुद्ध
और फूट पड़ा होगा
पौधा बनकर।
या फिर शिशु ने-
कोख़ के भीतर किया होगा
जन्म लेने के लिए।
हर बार-
आंदोलनकारी को प्रेम मिला है,
मिट्टी से भी,
और माँ से भी।
क्योंकि-
माँएं जानती हैं,
कि आंदोलन के बगैर,
सृजन संभव नहीं।
- अशोक कुमार।
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विजया सती के सौजन्य से
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