मंगलवार, 6 फ़रवरी 2024

यादें

उसने दरवाज़ा खोला 
और देखा

कमरे में हर ओर धूल से अधिक 
यादें पसरी हुई थीं 
मन ही मन उसने एक आह भरी 
और सोचा 

काश! 
हम यादों को भी धूल की तरह झाड़ सकते!

- दीपक सिंह।
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संपादकीय चयन 

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