शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

देह की कील से बँधी घर बाहर स्त्री

बड़ी चालाकी से
ठोक दिया
दीवार पर

कैलेंडर में
टाँग दिए
व्रत उपवास
चंद्र और
सूर्यग्रहण
वार्षिक फलादेश

गैस बदलने और
धोबी का हिसाब
दूधिया और
पेपर का नागा

जब भी फड़फड़ाया
पन्ना
बंद कर दिए
खिड़की दरवाज़े 

ऊपर से
टाँग दिए
कमीज़ 
बेल्ट
बच्चों के मेडल

भर दिया
दायित्व बोध के
गुमान से

बदले 
मौसम महीने और
साल
नहीं बदली
नियति

कील सी टँगी
स्त्री की ज़िंदगी 
समाज में 

देह से बँधी
घर बाहर 
स्त्री।

अनिता।
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