बड़ी चालाकी से
ठोक दिया
दीवार पर
कैलेंडर में
टाँग दिए
व्रत उपवास
चंद्र और
सूर्यग्रहण
वार्षिक फलादेश
गैस बदलने और
धोबी का हिसाब
दूधिया और
पेपर का नागा
जब भी फड़फड़ाया
पन्ना
बंद कर दिए
खिड़की दरवाज़े
ऊपर से
टाँग दिए
कमीज़
बेल्ट
बच्चों के मेडल
भर दिया
दायित्व बोध के
गुमान से
बदले
मौसम महीने और
साल
नहीं बदली
नियति
कील सी टँगी
स्त्री की ज़िंदगी
समाज में
देह से बँधी
घर बाहर
स्त्री।
अनिता।
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विजया सती की पसंद
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