जब किसी का हक़ खाना,
एक बार यहाँ भी हो आना
जहाँ रहती थाली ख़ाली है,
कानों में सींक की बाली है
भट्ठों के कमेरा बच्चे,
इनसे कहीं ईंट में लाली है
यहाँ टूटे-फूटे रस्ते होंगे,
पर मुश्किल नहीं पहुँच पाना
यहाँ प्रायश्चित करने ज़रूर आना।
ये अपने ही देश में बसते हैं
जीवन बेज़ार और सस्ते हैं
ककड़ी माफ़िक फटे होंठ
दर्द छिपाकर हँसते हैं
जब विदेश घूमकर आए हो
फिर मुश्किल नहीं यहाँ पहुँच पाना
यहाँ प्रायश्चित करने ज़रूर आना।
जब जेब तुम्हारी हरी-भरी हो
घर में दूध और दही पड़ी हो
जब तुम्हारे लालच के आगे
कोई बेवा बेबस, लाचार पड़ी हो
जब दो कौड़ी का हो जाए ज़मीर
और बेईमान हो जाओ सोलहो आना
यहाँ प्रायश्चित करने ज़रूर आना।
जब आध्यात्म की माई पहाड़ चढ़े
पत्थर पर कपूर की धार चढ़े
इंसान भले रहे भूखा-नंगा
मलमल का चद्दर मज़ार चढ़े
बेशक़ बेशर्मी निज स्वार्थ लिए
मंदिर में एक दीया जलाना
यहाँ प्रायश्चित करने ज़रूर आना
जब किसी का हक़ खाना।
- बच्चा लाल 'उन्मेष'।
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संपादकीय चयन